नई दिल्ली: संविधान का अनुच्छेद 44 सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू करने की बात करता है, लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे एक नया नाम देकर राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना दिया है”सेकुलर सिविल कोड”। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से दिए गए उनके भाषण में इस बात पर जोर दिया गया कि यह देश की प्रमुख मांग है। आखिर, ये सेकुलर सिविल कोड क्या है और इसके लागू होने पर देश में क्या बदलाव होंगे? आइए, विस्तार से समझते हैं।
धार्मिक भेदभाव के आधार पर भिन्न पर्सनल लॉ
प्रधानमंत्री मोदी का इशारा देश के विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ में विद्यमान भिन्नताओं की ओर था, जो शादी, तलाक, भरण-पोषण, गोद लेना, संरक्षण, और उत्तराधिकार जैसे मामलों में अलग-अलग नियम तय करते हैं। इन पर्सनल लॉ में सबसे बड़ा अंतर धर्म के आधार पर होता है, जबकि संविधान के अनुच्छेद 44 के मुताबिक कानून सभी के लिए समान होना चाहिए।
समान नागरिक संहिता लागू होने पर क्या होगा?
समान नागरिक संहिता लागू होने पर शादी, तलाक, भरण-पोषण, गोद लेना, संरक्षण, और उत्तराधिकार जैसे मामलों में सभी धर्मों के लिए एक समान कानून लागू हो जाएंगे। उदाहरण के तौर पर, हिंदू और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों में बड़े पैमाने पर अंतर है, चाहे वह संपत्ति के अधिकार हों, बच्चा गोद लेने का मामला हो, या फिर शादी और तलाक के नियम। समान नागरिक संहिता के आने से ये सभी असमानताएं खत्म हो जाएंगी।
महिलाओं के अधिकारों में असमानता
हिंदू और मुस्लिम पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकारों में सबसे ज्यादा असमानता देखने को मिलती है, हालांकि ईसाइयों के कुछ कानूनों में भी भिन्नता है। महिलाओं के इन अधिकारों में समानता लाना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट भी अपने कई फैसलों में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कर चुका है, लेकिन अब तक कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिया गया है।
शादी की आयु और तलाक के नियम
विभिन्न धर्मों के नियमों में असमानता की बात करें तो लड़की और लड़के की शादी की आयु भी अलग-अलग है। जहां हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख धर्मों में लड़की की शादी की आयु 18 वर्ष और लड़के की 21 वर्ष है, वहीं शरीयत कानून के अनुसार लड़की के मासिक धर्म शुरू होने पर उसे शादी के योग्य माना जाता है। तलाक के नियम भी हिंदू और मुस्लिम पर्सनल लॉ में अलग-अलग हैं।
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बच्चे का संरक्षण और तलाक
हालांकि तीन तलाक अवैध घोषित हो चुका है, फिर भी मुस्लिम समुदाय में तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-अहसन, तलाक-ए-बाइन और तलाक-ए-किनाया जैसे तलाक के विभिन्न रूप आज भी लागू हैं। वहीं, गुजाराभत्ता, बच्चा गोद लेना और संरक्षण के नियम सभी धर्मों में समान नहीं हैं। मुस्लिम समुदाय में बच्चा गोद नहीं लिया जा सकता और वसीयत का भी अधिकार नहीं होता।
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता कानून बना
समान नागरिक संहिता को लागू करना अब ज्यादा मुश्किल नहीं है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसले और नए प्रस्तावित कानून इसके कई पहलुओं को पूरा कर चुके हैं। जैसे कि सभी धर्मों के लिए विवाह की आयु समान करने का विधेयक संसदीय समिति के समक्ष लंबित है। उत्तराखंड सरकार ने भी समान नागरिक संहिता का कानून बना लिया है, जिसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल चुकी है। इसके लागू होने के बाद उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा।